Friday, January 22, 2010

जनेश्वर से छोटे लोहिया तक का सफर

बलिया के बैरिया क्षेत्र के शुभनथहीं गांव में पांच अगस्त 1933 को जन्मे जनेश्वर मिश्र ने राजनीतिक पारी इलाहाबाद से शुरू की थी। 1953 में वह इलाहबाद पहुंचे। किसान रंजीत मिश्र के दो पुत्रों में बड़े जनेश्वर मिश्र शुरू से ही समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे। चार दशक तक देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जनेश्वर मिश्र को 'छोटे लोहिया' की उपाधि दी गई। सात बार केंद्रीय मंत्री रहने के बाद भी उनके पास न अपनी गाड़ी थी और न ही बंगला। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में प्रवेश लेकर हिंदू हास्टल में रहकर पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही छात्र राजनीति से जुड़े। छात्रों के मुद्दे पर उन्होंने कई आंदोलन छेड़े। जिसमें छात्रों ने उनका बढ़-चढ़ कर साथ दिया। 1967 में उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। वह जेल में थे तभी लोकसभा का चुनाव आ गया। छुन्नन गुरु व सालिगराम जायसवाल ने उन्हें फूलपुर से विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव लड़ाया। चुनाव के सात दिन पूर्व उन्हें जेल से रिहा किया गया। चुनाव में जनेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद विजय लक्ष्मी राजदूत बनीं। फूलपुर सीट पर 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे और जीत गए। लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने 'छोटे लोहिया' का नाम दिया। वैसे इलाहाबाद में उनको लोग पहले ही छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे थे। उन्होंने 1972 के चुनाव में यहीं से कमला बहुगुणा और 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। इसके बाद 1978 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को शिकस्त दी। उसी समय वह पहली बार केंद्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। इसके कुछ दिन बाद ही वह अस्वस्थ हो गए। स्वस्थ होने के बाद उन्हें विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। 1984 में देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार गए। 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से लडे़ और कमला बहुगुणा को हराया। इस बार संचार मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर की सरकार में 1991 में रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाए गए। 1992 से अब तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे। वर्तमान में वह सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी थे। सड़क पर संघर्ष करते हुए ली दुनिया से विदाई । छोटे लोहिया यानी जनेश्वर मिश्र उस मजलूम के झंडाबरदार थे, जिसकी दबी कुचली आवाज को कहीं तवज्जो नहीं मिलती थी। संघर्ष के बल पर ही उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रतिष्ठित मुकाम हासिल किया और आम अवाम के लिए भी राह बनाई। संघर्ष का माद्दा उनमें बराबर रहा और उनकी अंतिम इच्छा भी रही कि सड़क पर संघर्ष करते हुए ही दुनिया से विदाई लें। जनेश्वर मिश्र का बचपन बहुत ही अभाव में बीता। प्राइमरी पाठशाला बैरिया में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद इंटर मीडिएट तक की शिक्षा उन्होंने दूबेछपरा इंटर कालेज में ग्रहण की। उस दौरान वह रोजाना दस किमी पैदल चलकर विद्यालय जाते-आते थे। जीवनभर समाजवाद की राजनीति करने वाले छोटे लोहिया का शुभनथहीं के लोगों के साथ आत्मीय संबंध था। वह त्योहार पर गांव आते थे और लोगों के साथ समय व्यतीत करते थे। अभी 12 जनवरी को ही वे शुभनथहीं आए थे और संक्रांति मनाने के बाद 19 को सपा के जेल भरो आंदोलन में भाग लेने इलाहाबाद गए थे। 19 जनवरी को सपा के जेल भरो आंदोलन में इलाहाबाद से ही जनेश्वर मिश्र ने हुंकार भरी थी। प्रदर्शन की सफलता से वे गदगद थे। उन्होंने कहा बहुत दिन बाद प्रदर्शन में शामिल होने पर अस्वस्थ होने के बावजूद अच्छा लगा। वह चाहते हैं कि सड़क पर संघर्ष करते ही उनकी मौत हो। अब लग रहा है जैसे उन्हें कुछ आभास हो रहा था। अगले दिन यानी 20 जनवरी को उन्हे दिल्ली जाना था। ट्रेन घंटा भर लेट थी। पता नहीं उनके मन में क्या आया कि उन्होंने यात्रा ही स्थगित कर दी। समाजवादी राजनीति को 'यू टर्न' मिला था । जनेश्वर मिश्र का गाजीपुर से गहरा लगाव था। डा. राम मनोहर लोहिया के करीब जाने का फैसला उन्होंने यहीं लिया था। तत्कालीन सोशलिस्ट पार्टी का 1962-63 में विभाजन हो गया था। पार्टी का यहां टाउन हाल में राष्ट्रीय अधिवेशन था। जिसमें डा. लोहिया ने केरल में अपनी ही पार्टी के शासनकाल में आंदोलनकारियों पर फायरिंग का विरोध किया। इस मुद्दे को लेकर पार्टी में दो खेमे हो गए। तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष एसएन जोशी ने डा. लोहिया के विरोध को खारिज कर दिया। डा. लोहिया पार्टी से अलग हो गए। दूसरे प्रदेशों की पार्टी इकाइयां जोशी के साथ थीं मगर यूपी इकाई के अध्यक्ष राजनारायण और समाजवादी युवजन सभा के प्रदेश सचिव जनेश्वर मिश्र ने अधिवेशन में ही ऐलान कर दिया कि वे डा. लोहिया के साथ रहेंगे।

छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र के निधन से मेरी व्यक्तिगत क्षति : नारद राय

नारद राय ने वयोवृद्ध समाजवादी नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और इसे समाजवादी आंदोलन के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। राय ने शोक संदेश में कहा कि जनेश्वर मिश्र एक प्रखर राजनैतिक व्यक्तित्व के स्थायी तथा समाजवादी आंदोलन के पुरोधा थे। पंडितजी के निधन से मेरी व्यक्तिगत क्षति हुई है । उन्होंने कहा कि श्री मिश्र अनवरत संघर्ष का जीता जागता उदाहरण थे। सिद्धातों के प्रति समर्पित व्यक्तित्व थे। वह डा.राममनोहर लोहिया के प्रिय लोगों में से एक थे और छोटे लोहिया के रूप में जाने जाते थे। देश में विपक्ष की राजनीति में वह अग्रणी रहे और उनका योगदान देश की राजनीति में अविस्मरणीय रहेगा।