Tuesday, July 7, 2009

Minister-NR

Narad Rai elected as MLA from Ballia Assembly seat in 2002 election. And he became Urban Development State Minister in Uttar Pradesh Government in the period since 03-10-2003 to 13-05-2007.

4 comments:

  1. आप के समाज कल्याण कर्यो के लिये साधुवाद.....

    http://bhumihaar.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. Respected sir,
    With due to respect,heartly congratulation on 2012 samajwadi victory..chandrashekhar land shines with Vikash Purush Firebrand of student politics hounarable Mr. Narad Rai.i have heared a lot about you from my father and my faimly members...your work towards ballia is execellent... we all love you...respect you...Jai neeraj shekhar,jai raja bhaiya,jai akhilesh yadav,jai mulayam singh yadav...jai uttar pardesh,jawano ki dharti,veeron ka desh bagi ballia uttar pardesh.jai hind.. jai janni ..jai matri bhumi..jai mati ki...

    Manish Singh
    Baiyasi
    ballia
    9911301534.

    ReplyDelete
  3. Nindak niyare rakhiye, Angan kuti chawai,
    bin pani sabun bina, nirmal kare subhaiy

    Aisi vani boliye, man ka aapa khoi,
    apna tan shital kare, auran ko sukh hoi

    कबीरा खड़ा बाज़ार में माम्गे सब की खैर
    ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर!

    बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलया कोई,
    जो मन खोजा आपना तो मुझ से बुरा ना कोई

    चलती चाक्की देख के दिया कबीरा रोए
    दुइ पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोए

    साँईं इतना दीजिये जामें कुटुम्ब समाये,
    मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू ना भूखा जाये

    माया मरी ना मन मरा, मर मर गये शरीर,
    आशा त्रिश्ना ना मरी, कह गये दास कबीर.

    दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे ना कोये
    जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होये.

    ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोये,
    अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होये.

    धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये,
    माली सीन्चे सौ घड़ा, ऋतु आये फ़ल होये.

    जाती ना पूछो साधु की, पूछ लीजिये ग्यान
    मोल करो तलवार की पड़ी रेहेन जो मयान.


    सर सर को गहि रहे, थोथा दे उडाय

    आये हैं तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर
    एक सिंघासन चढ़ी चढ़े एक बंधे ज़ंजीर

    दुर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय
    बिन बीज के सोंस सो लोह भस्म हुयी जाए

    माटी कहे कुम्हार को तू क्या रूंधे मोहे
    इक दिन ऐसा होयेगा मैं रून्धुंगी तोहे

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
    पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर

    तिनका कभू न निंदिये जो पवन तर होए
    कभू उडी अँखियाँ परे तो पीर घनेरी होए

    गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागून पाए
    बलिहारी गुरु आपकी जिन गोविन्द दियो बताये

    निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छबाय
    बिन पानी साबन बिना निर्मल करे सुहाय

    ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घर माहीं
    मूरख लोग न जानहिं बाहिर ढूधन जाहीं

    माला फेरत जग भया, फिर न मन का फेर
    कर का मनका डाली दे, मन का मनका फेर

    सब धरती कागद करून, लेखनी सब बन राइ
    सात समुंद की मासी करून, गुरु गुण लिखा न जाई

    पानी में मीन प्यासी रे
    मुझे सुन सुन आवे हासी रे
    आत्मज्ञान बिना नर भटके
    कोई काबा कोई कासी रे
    कहत कबीर सुनो भाई साधो
    सहज मिले अविनासी रे

    रहना नहीं देस बेगाना है
    यह संसार कागड़ की पुड़िया
    बूंद पड़े घुल जाना है

    Manish Singh
    Baiyasi
    ballia
    9911301534.

    ReplyDelete